Saturday, November 24, 2012

तस्वीर न सही रंग तो बदलें, तक़दीर न सही मन तो बदलें


गर्मियों में सिर पे रहने वाला,
सर्दियों में कुहासों में छुपकर बैठा है
माना हर ऋतु, वसन्त-हेमन्त होता नहीं
कौन कहता है, सूरज रोता नहीं...

सुना था आए थे कई सुरवीर
सूरज बनने का दावा करते
सबकी रातें स्याह हुईं
तारे बन सब लटक गए

छोड़ो-छोड़ो उन लम्हों को जो बित गईं
सर्दी की नयी सुबह, करें कुछ बात नयी
माना सर्द है मौसम, मुश्किलें हैं बड़ी
होसला तो करो, घर से निकलो तो सही

<<<तस्वीर न सही रंग तो बदलें, तक़दीर न सही मन तो बदलें>>>

Saturday, July 7, 2012

ऐ दुनिया ! मैं नहीं बदलूँगा 
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ऐ दुनिया !
मैं नहीं बदलने वाला
तुम्हें ही बदलना होगा...

तुम्हें बदलना होगा 
अपनी इतिहास दोहराने की प्रवर्ति
तुम्हें सीख लेनी होगी
पूर्वोत्तर में हुये गलतियों से
और तुम्हें भूलनी होगी भूत की बर्बरता
देखो तुम देर तक नकार नहीं पाओगे मुझे
क्योंकि मैं नहीं डरता तुम्हारे निर्माता से
इसलिए ऐ दुनिया
तुम्हें बदलना होगा...
करना होगा तुम्हें संसोधन,
तुम्हारे संरक्षकों के बनाए बेदिमाग नियमों का
करना होगा परिस्कृत खुद को
कालांतर में आई रूढ़ियों और कुरीतियों से
देखो अब देर तक नहीं रख पाओगे बरकरार
अंतर अपने कथनी और करनी में
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Randhir Bharat >

Monday, June 25, 2012

शब्दों के जाल बुनते हैं अब...
गरीबों का खून चूसने वाले लोग
वो जानते हैं,
ये हंसुए से नहीं काटा जा सकता

सच कहता हूँ
गुंड्डे और चोर नेताओं से ज्यादा खतरा
कवि बन चुके नेताओं से है
साले अलंकारों का प्रयौग भी जानते हैं
संज्ञाओं को सर्वनाम बनाना भी
आज मनमोहन कल आमिर पे चिल्लाओगे
कभी आईपीएल, कभी बिग बॉस देखाओगे
अरे बात बात, दूसरों को दोष देने वालों...
कुछ अपनी भी तो पहचान बनाओ,
कबतक दूसरों को फॉलो करते जाओगे.

Saturday, June 23, 2012

मैं सहज बहना चाहता हूँ,
नदी की तरह
तालों की खूबसूरती का कायल हूँ
पर एक जगह थमे रहना
मेरे वश की बात नहीं...

ऊँची उड़ान भरना चाहता हूँ,
पंक्षियों की तरह
पर घोसला बनाकर बसने की
मेरी कोई योजना नहीं है...

मेरी वापसी की रह देख रहे
वाशिंदों से
मैं कहना चाहता हूँ
मैं नहीं लौट पाऊंगा...

की निकलना है मुझे,
कोलम्बस की तरह
भारत की खोज में...

{बावरा रणधीर}

आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों

आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों
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सच कहती है... वो
बादलों के घिरने का उन्माद
उसके बूँद बन बरसने से ज्यादा
उतेज्जना भरा होता है...
वो यह भी कहती है...
दुनिया में सबसे ज्यादा मज़ा
लोगों द्वारा घोषित
सबसे निष्कृत कार्य करने में है...
मैं भी मानता हूँ
क्रांति नियमों के पालन से नहीं
वरण नमक बनाने से आती है
देश का भविष्य
स्कूल-कॉलेजों में उपस्थिति से नहीं
बल्कि एकता की हुंकार लिए
सड़कों पर,
रोड़ों को ठोकर मारते हुए
शहीद होने में है

प्रेम संकुचन है
दायरों का
विचारों का
तो प्रेम एक उड़ान भी है
सपनो का
विचारों का
प्रेम नहीं तोड़ पता
रेशम का पतला तागा भी
तो भर देता है
जूनून और होसला भी

देश का भला प्रेम में ही है
आपस में प्रेम करो
देश से प्रेम करो
नफरत
धोखा और बदले भड़काती है
और प्रेम
त्याग और खुशियाँ फैलाती है

♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
{रणधीर भारत }

Monday, June 11, 2012

वो जो आ बैठे हैं,
पुआल की ढेरों पे,
कह दो उनसे
चूहों ने खोल दी है
उनकी खोखली जमीन की पोल
तिलचट्टों ने भी, कर लिया है इरादा
फिर से, नदी की तटों पे जाने का
छुछन्दरों ने दोस्ती कर ली है, चमेली से
कुत्तों ने भी कर ली है पहचान
रोटिओं के असली मालिक की
बिल्लिओं ने छोड़ दिया है
चूहों का शिकार करना...
और बांधे घूम रही है घंटियाँ
खरगोशों ने शरू कर दिया है सत्याग्रह
गधों ने शुरू कर दी है जोगिंग...
अब रंगे सियारों की खैर नहीं
रंगरेजों ने काम उल्ट लिया है
और दीमकों ने ढूंढ़ निकला है...
पुआलों पे बैठे मुर्दों को...

<<<रणधीर भारत>>>